Sunday, 19 October 2025

चित्रा की कहानी - एक उम्मीद की किरण


"ज़िंदगी में मुश्किलें किसे नहीं आतीं। लेकिन मुश्किलों का सामना करने वाले ही ज़िंदगी में जीतते हैं।"

चित्रा की ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही थी। चित्रा। आपकी और मेरी जैसी एक लड़की। लगभग तीस साल की। ​​

चित्रा का जीवन ऐशो-आराम से गुजर रहा था ऐसा नही था, 

लेकिन अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर सके इतनी उसके पास पर्याप्त आमदनी थी। इसलिए चित्रा का परिवार संतुष्ट था।

चित्रा के पिता की नौकरी चली गई थी। नतीजतन, उसकी माँ की बीमारी और उसके दो भाइयों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी चित्रा पर आ गई। 

चित्रा तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी, फिर दो भाई-बहन हुए।

सुशिक्षित और संस्कारी चित्रा एक प्रतिभाशाली और बुद्धिमान लड़की थी। 

चाहे ऑफिस हो या घर, चित्रा हमेशा अपनी छाप छोड़ती थी, 

चित्रा जहाँ भी होती, सब उसकी तारीफ़ करते थे। 

चित्रा दिल से बहुत दयालु लड़की थी। उसे सबकी परेशानियों में मदद करना बहुत पसंद था। 

इसलिए, जब भी किसी को मदद की ज़रूरत होती, चित्रा को तुरंत बुलाया जाता था।
चित्रा समझदार और मेहनती थी। उसके सपने तो बहुत थे, लेकिन परिवार की ज़िम्मेदारियों में वह इतनी उलझी हुई थी कि उसे खुद पर ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता था।
वह ज़िंदगी में अपने शौक भी पूरे करना चाहती थी, खुद पर ध्यान देना चाहती थी और बड़ा नाम कमाना चाहती थी। लेकिन एक के बाद एक मुसीबतें उसके घर आती रहीं और उन मुसीबतों को पार करते करते चित्रा खुद को खोती जा रही थी। छोटी सी उम्र में मिली ज़िम्मेदारियों की वजह से मानो उसने अपना आत्मविश्वास ही खो दिया था।
हमेशा ऊर्जावान और उत्साह मे रहने वाली चित्रा अब अपने आप में ही रहने लगी थी। उसे हमेशा अपने घर के लोगों की चिंता रहती थी और बस यही सवाल उसे परेशान करता था कि उसके घर का क्या होगा? इसलिए वह बहुत थक गई थी। एक दिन, जब वह ऐसे ही सोच रही थी, चित्रा अचानक अपनी सीट से उठी और बीच सड़क पर चलने लगी। वह ज़िम्मेदारियों के बोझ से थक चुकी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कर रही है और इसके क्या परिणाम होंगे। उसके माता-पिता का क्या होगा? वह ऐसे ही चल रही थी और अचानक पीछे से एक कार का हॉर्न बजा। वह अपने विचारों में इतनी खोई हुई थी कि उसे पता ही नहीं चला कि वह कब सड़क के बीचों-बीच आ गई। चित्रा को अचानक होश आता है और वह खुद को संभालते हुए घर की ओर चलने लगती है। थोड़ा आगे बढ़ते ही उसे एक रिक्शा दिखाई देती है और वह रिक्शे में बैठकर घर की ओर चल पड़ती है।
रिक्शे में बैठे-बैठे चित्रा सोचने लगती है कि आखिर हुआ क्या था। (खुद से) "आज मै क्या कर रही थी? अगर मेरे साथ कुछ हो जाता तो क्या होता? मुझपर ज़िम्मेदारियाँ हैं, लेकिन मैने उसे गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन अगर आज मेरे साथ यह अपराध होता तो क्या होता? मेरे माता-पिता, भाई-बहनों की तरफ कौन देखता? नहीं, मुझे हार नहीं माननी चाहिए, मुझे इससे निकलने का रास्ता ढूँढ़ना होगा, हर सवाल का जवाब होता है, मै उसे ढूँढ़ लुंगी ।" ऐसा सोचते हुए चित्रा अपने मोबाइल पर यूट्यूब देखने लगती है। वीडियो देखते-देखते उसे अचानक आकर्षण के नियम पर वीडियो दिखाई देता हैं। वह उन वीडियो को बड़े ध्यान से देखती है। उसे समझ आता है कि वह कहाँ गलती कर रही है। वह घर पहुँचती है और बहुत खुश होती है। क्योंकि उसे खुश रहने का रास्ता मिल जाता है। उसी खुशी में, वह रिक्शेवाले को पैसे देकर धन्यवाद करती है और मन मे ठान लेती है। "आज से ज़िंदगी में चाहे कितनी भी मुसीबतें आएँ, मैं उनसे नहीं डरूँगी, और जो भी ज़िम्मेदारी आएगी, उसे खुशी-खुशी स्वीकार करूँगी और निभाऊँगी," चित्रा खुशी-खुशी घर में प्रवेश करती है और सबको प्यार से गले लगाती है। वह भी तहे दिल से सबका शुक्रिया अदा करती है।

निष्कर्ष :

ज़िंदगी में हर इंसान के हिस्से में कुछ न कुछ मुश्किलें आती हैं।
कुछ लोग उन मुश्किलों के आगे हार मान लेते हैं,
तो कुछ लोग उन्हें अपनी ताक़त बना लेते हैं।

चित्रा ने भी यही सीखा —
कि भाग्य से ज़्यादा मज़बूत हमारा सोचने का तरीका होता है।
जब उसने नकारात्मक सोच छोड़कर सकारात्मकता अपनाई,
तो उसे समझ आया कि ज़िंदगी बदलने की शुरुआत हमेशा अपने अंदर से होती है।

ज़िम्मेदारियाँ बोझ नहीं होतीं,
अगर हम उन्हें मुस्कान के साथ निभाना सीख जाएँ।
और यही थी चित्रा की असली जीत —
उसने हालात नहीं बदले,
बल्कि हालात को देखने का नज़रिया बदल दिया।

संदेश:
मुसीबतें सबके जीवन में आती हैं,
लेकिन जो उनसे हारने के बजाय उनसे कुछ सीखते हैं,
वो ही ज़िंदगी की असली जीत पाते हैं। 



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